सोच कर देखिए अगर राजा और कलमाड़ी तिहाड़ के बजाय किसी यूपी, राजस्थान या पंजाब की जेल में रखे जाते। कोर्ट परिसर में हवालात का सीन। दो ही खिड़कियां, एक पर गुटखे के खाली पाउच को मोड़ कर दांत कुरेदता सड़कछाप डॉन तो दूसरी पर बाहर पुलिस वालों से मोबाइल की सैटिंग करता एक ताऊ, एक कौने में केले के छिलकों, बीड़ी के ठूंठों और पानी की पॉलीथिन्स का बदबूदार ढेर और लॉकअप के बीचोंबीच मदमस्त चाल से राउंड राउंड घूमता अकेला पंखा। दोनों झट से उसके नीचे पसीना सुखाने खड़े हो गए, तुरंत पैरों के पास से आवाज आई, कौन भूतनी का है। तब दोनों को पता लगा कि जितने भाईबिरादर खिड़की पर लटके या कमरे में खड़े दिख रहे हैं, उससे ज्यादा जमीन पर गमछा बिछाकर आराम फरमा रहे हैं। फौरन यू-टर्न लिया भाई लोगों ने। अचानक एक भाई ने खिड़की पर बुलाया। बोले दीवानजी पूछ रहे हैं, मोबाइल सर्विस तो नहीं चाहिए। दोनों फौरन उचके ..हां हां. चाहिए। पांच सौ रुपया पर घंटे का रेट है, नौ लोगों का जेल से ही बुक है, एक ही सेलफोन खाली है, तुम लोग आपस में वक्त का बंटवारा कर लो। नेकी और पूछपूछ। लेकिन पैसे तो थे ही नहीं अंटी में, मगर बाकी पे कैसे..? केबीसी के इस सवाल का जवाब दिया एक ताऊ ने, बोले तुम अभी ताजे हो, हम तारीख पे आए हैं जेल से ही। कोई बात नहीं कल मुलाकात में कोई पैसे देगा तो बात कर लेना।
ऱुआसी सूरत लेकर जैसे ही मुड़े कि वैन में जाने के लिए आवाज लगनी शुरू हुई तो दोनों का नाम आखिरी था, सारा चक्कर तब समझ आया जब बैठने के लिए सीट ही नहीं मिली। पीछे वाला कलमाड़ी जैसे करोड़ों के वारे न्यारे करने वाले को बीड़ी ऑफर करता हुआ बोला, हर काम यहां पैसे से होता है, साला वैन में भी वही पहले घुसेगा जो पैसा देगा। किंकर्तव्यविमूढ़...।
खड़े खड़े तेल निकल गया, मेन गेट से घुसते ही चलो सब लोग नीचे बैठ जाओ, राजा कलमाड़ी को देखे और कलमाड़ी राजा को और नजरों में बेबसी भरी हिचकिचाहट। को्र्ट से उनके साथ आए बाकी कैदी उकड़ू हो कर लाइन में बैठ गए, तभी पीछे से एक हथौड़ा जैसा भारीभरकम हाथ उनके कंधे पर पड़ा ..बैठ जाओ ससुरो..और वो भी शौच मुद्रा में झुकते चले गए। इधर कलमाड़ी कनखियो पूरे चैम्बर का मुआयना करने में जुटे थे कहीं सीसीटीवी कैमरा तो नही लगा, क्या भरोसा न्यूज चैनल वालों का भई, बेइज्जती खराब करने में टाइम थोड़े ही लगता है। पुराने कैदियों को जाने दिया गया और कलमाडी और राजा को अंदर के गेट को पार कर फील्ड के कौने पर बिठा लिया गया। चार आजीवन कारावास पाए पीतवस्त्र धारी कैदी पीलिया और दो पुलिस हवलदारों, ने मुर्गों को शिकारी नजर से घूर रहे थे। एक बोला ये छोटा वाला तो शक्ल से ही चरसी लगता है और इस दाडी वाले को तो लगता गुटखे खान में पीएचडी है। झट से हवलदार चीखा... ले लो दोनों की नंगाझोरी... अरे पैंट भी उतरवाओ, अरे पैर की मोहरी देखो, वैल्ट वाली जगह पर देखो, और ये बैल्ट यहीं रखवा लो... , ससुरे गमछा तक लेकर नहीं आए हैं, रात भर मांग कर खाएंगे, धोएंगे।
चीफ साहब नंगे हैं दोनों, हो गई तलाशी, एक वरिष्ठ पीलिया बोला। दूसरा बोला, अब पूछ गिनती कटवानी है कि नहीं। हां भाई बोलो, राजा के चेहरे पर कौतुहल तो कलमाड़ी ने पूछ ही डाला, क्या मतलब। मतबल ये है कि कुछ खर्चा पानी दोगे तो मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी, अपनी बैरक में बैठ कर पूरे दिन लूडो खेलना, नहीं तो भंडारे में आलू छीलने पड़ेंगे। दो और ऑप्शन हैं, जेल के हॉस्पिटल में रहना है तो 2हजार रुपए पर डे लगेंगे, नंबरदारों के साथ यानी पालिया वाली कम लोगों की बैरक में रहना है, तो 10-10 हजार महीने से एक भी पैसा कम नहीं। कलमाड़ी ऑब्जेक्टेड,मगर हम तो बस तीन-चार दिन ही, चीफ साहब ने व्यंग्यात्मक इंटरफीयर किया,यहां हर कोई तान साल तक यही कहता है। फिर कड़क के बोले बताओ 80-90लोगों वाली बैरक में रहना है या 10-12 पीलिया कैदियों के साथ, राजा फौरन बोला-- सेकंड ऑप्शन इज बैटर। जैसे तैसे बैरक में आए, दो दो कंबल लिए, जमीन पर बिछाया। जब तक उन्हें बता दिया गया था कि खाना यहीं और बेहतर चाहिए तो पांच हजार अलग से लगेंगे। लेटे तो मच्छर काटने लगे, एक कैदी से मच्छर वाला तेल मिला इस शर्त पर कि अगले रोज मुलाकात करने वालों से उसके लिए दो बीड़ी के बंडल और एक इसी तेल की शीशी मंगा कर देंगे। जैसे तैसे रात कटी, राजा की तो पूरी कोशिश थी कि उजाला होने से पहले ही किसी तरह ओपन एयर टॉयलेट से निपट लिया जाए, इस चक्कर में रात भर सो नही पाए।
सुबह सुबह मुलाहिजे का टाइम आ गया, ऑफिस में ले जाया गया। आवाज लगी सुरेश पुत्र शामराव, राजा पुत्र अंडीमुत्थु.. सारे कपड़े उतारकर ऐसे स्पॉट ढूंढे गए,जिनसे उनकी बाद में पहचान होती। फिर वही आवाजें लगीं मुलाकातियों की, दोनों सो कोई ना कोई मिलने आया था। चार गेट पार कर बीच मैदान में पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर मुलाकात हुई, जरूरत का सारा सामान और पैसा लेकर वापस लौटे। पैसे कूपन्स में कनवर्ट कर लिए। कूपन बोले तो जेल की मुद्रा। हर गेट पर बीस बीस रुपए सिपाहियों ने और दस दस रुपए नंबरदारों ने वसूले। बैरक में वापस लौटे तो टीवी पर जेल का एकमात्र चैनल पर आईपीएल का मैच शुरू हो गया, सुना था छुट्टी पर गया जेलर क्रिकेट का शौकीन है। अब दोनों के दिमाग में अलग अलग विचार कलाबाजी खा रहे थे, कलमाड़ी ने पहली बार आईपीएल मैच देखा था और वो भी दो दिन लगातार... मोदी भी नहीं इंडिया में ..बाहर निकलकर या तो नई टीम खरीदनी है, या नई लीग ही शुरू करनी है..गजब की चीज है आईपीएल। और इधर राजा गंभीरता से सोच में था कि अगली बार से स्टेट में कारागार मंत्री पद लिया जाएगा। सब कुछ होता है, सबको पता है, लेकिन किसी को कोई आपत्ति नहीं..व्हाट ए इकोनोमिक्स भाई। अकेले तमिलनाडु में ही पचपन जेल, 1800 बैरक, 75,000 गेट, नब्बे हजार कैदी ......।।।
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